पुस्तक साभार : द प्रोफेट

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देवदूत (द प्रोफेट ) 

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एक खगोलशास्त्री ने कहा-

"स्वामी, हमें समय के बारे में कुछ बताइए।"

और उसने जवाब दिया-

तुम समय को मापना चाहते हो, जिसे बिल्कुल भी मापा नहीं जा सकता 

समय और ऋतु के अनुसार तुम अपने व्यवहार को निर्देशित

करो और इसी के साथ अपनी आत्मा के पथ को भी निर्देशित करो।

समय को तुम एक जल-स्रोत का रूप देते हो, जिसके किनारे

तुम बैठ सको और उसके बहाव को देख सको।

शाश्वत (ईश्वर) तुम्हारे जीवन की शाश्वतता से भली-भाँति

परिचित है। और यह भी जानता है कि बीता हुआ कल केवल आज की याद है और आने वाला कल आज का स्वप्न

इस तरह तुम्हारे अंदर जो संगीत चहचहाता है और चिंतन

करता है, अभी भी सीमा के भीतर ही रहकर निवास करता है, जिस क्षण आकाश तारे बिखर गए थे।

तुममें से ऐसा कौन है, जो यह अनुभव न करे कि उसकी

प्रेम-शक्ति असीम है?

और फिर भी कौन यह अनुभव नहीं करता कि वही प्रेम, जो कि

असीम है, उसी के अस्तित्व के केंद्र में सीमित रहते हुए न तो वह

एक प्रेम-विचार से दूसरे प्रेम-विचार की ओर चलायमान है और न

ही वह एक प्रेम-भावना से दूसरी प्रेम-भावना की ओर चलायमान है?

और क्या प्रेम की तरह समय भी अविभाजित और अचल नहीं

लेकिन अगर अपने विचारानुसार तुम मौसमों में समय को मापो

तो हर मौसम को मौसमों में लपेट लो और वर्तमान द्वारा अतीत को

याद से और भविष्य को तृष्णा से आलिंगन करने दो।

-खलील जिब्रान 


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