पौराणिक कथाएँ और छद्म-विज्ञान: एक विवेचना

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इस वीडियो में सोशल मीडिया पर धर्मग्रंथों में नौ ग्रहों से जुड़े विभिन्न दावों की सत्यता की जांच की गई है, जिसका सारांश नीचे प्रस्तुत किया गया है। कृपया वीडियो को अंत तक देखें और पृष्ठ पर उपलब्ध प्रश्नोत्तरी को हल करें। इससे छद्म विज्ञान (pseudo-science) से संबंधित आपके भ्रम दूर होंगे और वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिलेगा।


पिछली सदी ने विज्ञान के क्षेत्र में असाधारण प्रगति की है, और 21वीं सदी में विज्ञान ने मानव कल्पना को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया है। आज, विज्ञान एक प्रमाणिकता की मुहर जैसा है, जिससे प्रेरित होकर कई धर्म स्वयं को "वैज्ञानिक" प्रमाणित करने का प्रयास कर रहे हैं। इसमें हिंदू धर्म भी पीछे नहीं है।

हिंदू धर्मग्रंथों में नौ ग्रहों के वर्णन को अक्सर वैज्ञानिक खोजों से जोड़ा जाता है। उदाहरणस्वरूप, कहा जाता है कि प्राचीन ग्रंथों में यूरेनस, नेप्चून और प्लूटो का जिक्र पहले से मौजूद था। परंतु जब इन दावों की गहराई से पड़ताल की जाती है, तो सच्चाई कुछ और ही सामने आती है।

विज्ञान और पौराणिक कथाओं के बीच अंतर

हिंदू धर्म में "नौ ग्रहों" के रूप में जिनका वर्णन किया गया है, उनमें सूर्य, चंद्रमा, राहु और केतु भी शामिल हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, इनमें से कई "ग्रह" नहीं माने जाते। केवल मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ही वैज्ञानिक ग्रह हैं। इसके अलावा, यूरेनस, नेप्चून और प्लूटो का वर्णन कहीं नहीं मिलता। ये ग्रह टेलीस्कोप के आविष्कार के बाद क्रमशः 1781, 1846, और 1930 में खोजे गए।

जो दावे किए जाते हैं कि प्राचीन ग्रंथों में इन ग्रहों का वर्णन है, वे या तो गलत व्याख्याओं पर आधारित होते हैं या विशिष्ट संदर्भों का अनुचित उपयोग करते हैं। जैसे, महाभारत में "तीक्षण ग्रह" या "श्वेत ग्रह" जैसे शब्दों को यूरेनस और नेप्चून से जोड़ा जाता है। लेकिन जब इन श्लोकों का अध्ययन किया गया, तो यह स्पष्ट हुआ कि ये फलित ज्योतिष के संदर्भ में उपयोग किए गए विशेषण मात्र हैं।

छद्म-विज्ञान और प्रमाण की आवश्यकता

पौराणिक कथाओं को विज्ञान से जोड़ने की कोशिशें अक्सर तथ्यों और कल्पनाओं का मिश्रण होती हैं। दावे करना सरल है, परंतु बिना प्रमाण के ये केवल छद्म-विज्ञान का हिस्सा बनते हैं। उदाहरण के लिए, ज्योतिष को विज्ञान कहना सही नहीं है क्योंकि यह अनुभवों और सांकेतिक व्याख्याओं पर आधारित है, न कि वैज्ञानिक पद्धति पर।

निष्कर्ष

धर्म और पौराणिक कथाएँ हमारी सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं, लेकिन इन्हें विज्ञान से जोड़ने के प्रयासों में सावधानी बरतनी चाहिए। वैज्ञानिक खोजें और प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन दोनों अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं, परंतु उन्हें अनावश्यक रूप से मिलाना तर्कसंगत नहीं है। अतः हमें छद्म-विज्ञान और वास्तविक विज्ञान के बीच फर्क समझने की आवश्यकता है।

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